Friday, November 7, 2008

गरीबी

मैंने जब उस पार देखा 
तो मुझे याद आया
कि कोई खड़ा है उस पार,
पास जाकर देखा तो,
देखती ही रह गयी।
लथपथ खून से
फ़टेहाल जिंदगी में
मजबूर संसार से। 
आँखे मेरी रह गयी निर्निमिष,
संसार का अखण्ड सत्य,
गरीबी के कारण वह,
मरने को तत्पर था।
क्या करती मैं भी,
ओस चाटे प्यास न बुझे,
मेरे कुछ कहने से भी,
न कम हो सकती गरीबी।
कोई अंत नहीं दृश्यों का,
पुनः गयी उसी नदी पर
देखे मैंने फिर से वही दृश्य
इस गरीबी को देखकर,
मेरा रोम-रोम काँपने लगा
फिर उसी तरह का चेहरा,
खून से लथपथ,
छोटे बच्चे को,
भूख से बिलखते, नंगे बदन !!